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ROE के फायदे

ROE के फायदे
Average Shareholders Equity = 100cr

ROE meaning in Hindi Return On Equity

शेयर मार्केट में ROE क्या होता है | ROE Meaning in Hindi

हेलो दोस्तों, आज के इस लेख में हमने आपको ROE के बारे में समझाने की कोशिश की है की ROE क्या होता है, शेयर मार्किट में ROE क्या होता है, ROE फुल फॉर्म, Return on Equity का क्या उपयोग होता है.

ROE full form in share market “Return on Equity” है.

ROE क्या हैं (ROE Meaning In Hindi)

ROE फुल फॉर्म “Return on Equity” ये Financial ratio है. इससे कंपनी की कमाई देखने को मिलती है. सधारण भाषा में कहाँ जाए तो Return on Equity का मतलब होता है की वह कंपनी अपने शेयरहोल्डर को कितना ज्यादा मुनाफा कमा के दे रही है.

Example –

एक ABC कंपनी है जिसका ROE 12% है तो इसका मतलब हुआ, की कंपनी अपने शेयरहोल्डर प्रतेक 100 की हिस्सेदारी पर 12 रुपय फायदा ले रही है. जितना ज्यादा Return on Equity होगा उतना ही अच्छा होता है, क्योकि इससे ये पता चलता है की कंपनी में शेयरहोल्डर की इन्वेस्ट किये गय पैसो का ठीक से उपयोग हो रहा है.

एक निवेशक के लिए कंपनी का ROE कम होना अच्छा संकेत नहीं होता है. आगे हम पूरी जानकारी समझेंगे, की ROE कितना होना चाहिए.

Note : Return on Equity हमेशा प्रतिशत में निकलता है.

Return on Equity Formula

ROE = Net Income/shareholder’s Equity

पहले हम Net Income को मतलब समझते है, Net Income वह है जो कंपनी के सभी प्रकार के टैक्स, ब्याज और प्रोडक्ट लागत से बची हुई कमाई को Net Income कहते है. किसी भी कंपनी का Income statement आसानी से google पर tools की मदद से देख सकते है.

अब हम Shareholders equity का मतलब समझते है, Shareholders equity वह Net worth है जो total assets में से total liabilities (कर्ज) को घटाने के बाद मिलती है. यह जानकारी आपको कंपनी की balance sheet में आसानी से मिल जाएगी.

ध्यान रह, यदि फाइनेंशियल ईयर के सुरु में दी गई shareholders equity और वर्ष के अखिर में दी गई shareholders equity के बिच में यदि अधिक variations रह तो आप दोनों का average (औसत) ले सकतें हैं.

वरना, आप फाइनेंशियल ईयर के अखिर में दी हुई Total equity का उपयोग कर सकतें हैं.

एक अच्छी कंपनी का Return on Equity (ROE) कितना होना चाहिए?

यदि किसी भी कंपनी में लम्बे समय के लिए इन्वेस्ट करना है तो उस कंपनी का ROE 15% से कम नहीं होना चाहिए. इतना ही नहीं बल्कि आपको उस कंपनी के 5 वर्ष पहले का भी देखना जरुरी है और पिछले 5 वर्ष का ROE कम नहीं होना चाहिए.

यदि उस कंपनी का साल का साल बढता हुआ दिखाई देता है तो वह लम्बे समय के लिए इन्वेस्ट करने के लिए बहुत बढ़िया है. सिर्फ अच्छे ROE को देखकर कंपनी को अच्छा नहीं बता सकते है क्योकि कंपनी के कर्जा (DEBT) लेने से Return on Equity बढ़ जाता है. और ऐसे में कंपनी को समझने में हम गलती कर सकते है.

Example- 2.

मान लीजिये की AB Ltd. और DC Ltd. 2 कंपनियां है

और दोनों कंपनियों का net profit 15cr है और

दोनों कंपनियों के total asset value 100cr है

ROE क्या है?

ROE का फुल फार्म रिर्टन आफ इक्विटी (return of equity) है यह एक प्राॅफिटेबिलिटी रेशो (profitability ratios) है जो यह बताता है कि कम्पनी इक्विटी पर कितना प्राॅफिट दे रही है।

ROE एक वित्तीय अनुपात है जो निवेशक के निवेश पर लाभ कमाने की छमता को मापता है। इस प्रकार रिर्टन आन इक्विटी (equity) कम्पनी के निवेश पर प्रतिशत के रुपम मे प्राफिट को बताता है।

ROE को कैसे केलकुलेट किया जाता है

इसकी गणना कम्पनी की नेट इनकम मे शेयर होल्डर इक्विटी का भाग देकर निकाला जाता है जो कि प्रतिशत मे प्राप्त होता है।

ROE = Net Income / Total Equity

ROE क्या है? इसके क्या फायदे है?

A Ltd.X Ltd.
EBIT (Earnings before interest & taxes)10,00012,000
Interest(2,000)(1,000)
Profit before Tax (PBT)8,00011,000
Tax (30%)(2400)(3,300)
Profit after Tax (PAT)5,6007,700
Shareholders Capital12,00018,000
Reserves5,0007,000
Preference Shares3,000
Net worth (Sh. Equity)20,00025,000
(5,600 ÷ 20,000) × 100(7,700 ÷ 25,000) × 100
ROE28%30.8%

ROE के फायदे

के कई सारे फायदे है जिससे की शेयर को चुनने मे मदद मिलती है। किसी भी कम्पनी के शेयर खरिदनेे से पहले उसका ROE देखा जाता है.

ग्रोथ रेट का अनुमान लगाने मे

रिर्टन ऑन इक्विटी (ROE) द्वारा कंपनी की ग्रोथ का पता भी लगाया जा सकता है जितना ज्यादा रिर्टन रिशो (return ratio) रहेगा उतनी ज्यादा ही कम्पनी की ग्रोथ की संभावना होती है। आर ओ ई द्वारा डिवीडेंट की ग्रोथ का भी पता लगाया जाता है।

प्रतिद्वंदी कंपनियो के साथ तुलना करने मे सहायक

किसी एक जेसी सेक्टर की एक जैसी कम्पनीयो के तुलनात्मक अध्ययन (comparative study) मे भी आर ओ ई उपयोगी है वैसे तो कम्पनीयो की तुलना नही कि जा सकती पर जब निवेशक निवेश करता है तो यह जरुरी है कि वह समान सेक्टर की समान कम्पनीयो का तुलनात्मक अध्ययन करे और उसके बाद निवेश करे।

ग्रोथ की स्थिरता को ज्ञात करने मे

जब आप एक अस्थिर शेयर (volatile stock) का चुनाव कर लेते है तो आपको ग्रोथ की स्थिरता पता लगाने के लिये आर ओ ई का उपयोग किया जाता है। अगर आप किसी कंपनी के करंट ईयर के ROE को देखते हैं जो कि एक बढ़िया आर ओ ई हैं। ये ROE उस कंपनी की सम्पूर्ण स्थिति नहीं बताता। लेकिन आपको कंपनी के पिछले कुछ वर्षों के को देखकर अंदाजा लग जाता हैं कि कंपनी अपना अच्छा आर ओ ई मेंटेन कर पा रही हैं या नहीं।

D/E ( Debt to Equity )ratio ROE पर क्या प्रभाव डालता है?

दूसरा, अगर आपके पास फंड्स कम पड़ जाते है तो आप किसी और से बाकि बचे हुए पैसे लेंगे ये पैसे आपका कोई रिलेटिव या बैंक हो सकती है। अब वो आपको पैसे दो शर्तो पर दे सकते है

१. वो आपको कंपनी में हिस्सेदारी मांग ले, उस केस में आपके कंपनी के ऊपर कोई कर्ज नहीं होगा।

२. या फिर वो आपको पैसे किसी fixed इंटरेस्ट रेट पर देंगे। मतलब ये आपके कंपनी के ऊपर एक कर्ज है जिसे आपको चुकाना ही होगा।

----अब मान लीजिये इस साल आपकी कंपनी को 20 करोड़ का प्रॉफिट हुआ।

Case 1 : जिसमे सारा पैसा आप ने लगाया है या फिर किसी ने Investment किया है पर आपकी कंपनी पर कोई कर्ज नहीं है। तो अब ROE हो जायेगा

ROE meaning in Hindi | Return On Equity नही देखा, तो मत करना कंपनी के शेयर्स में इंवेस्ट्!

ROE meaning in Hindi Return On Equity

अब दोस्तों, यह निर्भर करता है उस कंपनी पर जिसमे आपने अपना पैसा इंवेस्ट् किया है। क्या वह कंपनी, एक अच्छा मुनाफा कमा रही है? क्या वह कंपनी अपने निवेशकों को उनका प्रॉफ़िट देने मे शक्षम है? क्या वह कंपनी किसी प्रकार के कर्ज़ में तो नही?

यह कुछ बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए ही हमें यह निर्णय लेना ROE के फायदे होता है की हमें किस कंपनी में निवेश अर्थात इंवेस्ट् करना है। इन सभी चीजों के अलावा return on equity एक ऐसा पेरामेटर है

जिसको देखे बिना कंपनी में इंवेस्ट् करना यानी की अपने पैसों को खुद ही डूबना। तो आईये, आज हम आपको बताएंगे की return on equity क्या है?, ROE meaning in hindi इससे कंपनी के स्टेट्स का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है। तो इस आर्टिकल को आख़िर तक जरूर पढें।

Return on Equity क्या है? (ROE meaning in hindi)

ROE meaning in hindi किसी भी कंपनी में निवेश पर कितना रिटर्न मिला यह बताती है।

जैसा की हम सभी जानते हैं की इक्विटी एक प्रकार का शेयर है, और return का मतलब होता है हमारे द्वारा ROE के फायदे की गयी किसी चीज़ का परिणाम।

तो आसान शब्दों में, return on equity का मतलब हुआ हमारे द्वारा किसी कंपनी में पैसें इंवेस्ट् किये जाने पर उससे मिलने वाला return या profit यानी की हमारी इंवेस्मेंट् का परिणाम। हर कंपनी का एक अपना return on equity होता है जो की एक ratio के रूप में देखा जाता है।

यह हमे यह अनुमान लगाने में मदद करता है की कंपनी में इंवेस्ट् करके हमें कितने प्रतिशत तक का शेयर कंपनी के प्रॉफ़िट में से मिल सकता है। ज्यादा return on equity का मतलब होता है, ज्यादा प्रॉफ़िट। यानी की हम ज्यादा शेयर के हक़दार हैं।

तो हमे यह बात ध्यान में रखनी चाहिए की जिस कंपनी में हम इंवेस्ट् कर रहे हैं उसका return on equity ज्यादा हो। अधिकांश लोग 25-30 प्रतिशत को एक अच्छा return on equity बताते हैं क्योंकि यह अन्य वित्तीय संस्थाओ के मुकाबले ज्यादा है और पर्याप्त है।

Return On Equity के फ़ायदे

ROE हमारे द्वारा की गयी इंवेस्मेंट् का संभवतः प्रतिफल हमको बताता है। यह एक ऐसा पेरामेटर है जो की कंपनी की आर्थिक स्तिथि का अनुमान लगाते हुए, हमे यह भापने में सहायक साबित होता है की हमे किस प्रकार की कंपनी मे इंवेस्ट् करने से अधिकतम लाभ व न्युन्तम् हानि होगा।

  • किसी भी कंपनी में इंवेस्ट् करने से पहले उसका return on equity जानना एक महत्वपूर्ण कार्य है परंतु आपके मन में अब यह सवाल होगा की आख़िर किसी कंपनी का ROE क्या है यह हम कैसे जाने? तो आईये हम आपकी यह चिंता भी दूर करें।
  • किसी भी कंपनी का ROE जानने के लिए सबसे पहले उसकी टोटल इन्कम देखनी होती है।

ध्यान रहे टोटल इन्कम का मतलब है की टोटल प्रॉफ़िट। कंपनी द्वारा कमाए गए सारे पैसें इन्कम नही होती, क्योंकि उसमे से बाकी खर्चे भी पूरे करने होते हैं।

तो आप केवल कंपनी का मुनाफा यानी की प्रॉफ़िट देखें। यह आपको कंपनी की वेबसाइट, न्यूज़ पेपर या फिर किसी भी financial magazine में मिल जायेगी। जैसे की Moneycontrol website

कुछ जरूरी बातें?

कंपनी का मुनाफा देखते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होता है की कही वह मुनाफा किसी गलत काम या फिर गैरकानूनी तरीके से तो नही कमाया गया है। क्योंकि, केवल मुनाफा ही जरूरी नही है, वह कहा से आया यह जानना अनिवार्य है।

और क्योंकि equity शेयर खरीदने के बाद आप कंपनी के residual owners केहलाए जाओगे तो आपका यह जानना जरूरी है की कही कंपनी किसी प्रकार के लोन या ब्लैक मनी लेकर तो मुनाफा नही कमा रही।

अगर ऐसा है तो आप ऐसी कंपनी मे इंवेस्ट् कभी ना करें क्योंकि यह मुनाफा बेशक एक ज्यादा ratio वाले ROE को दर्षायेगा पर असल मे ऐसा ROE किसी काम का नही है तो ऐसी कंपनियों में इंवेस्ट् करने से बचें।

Stock Market Tips: निवेश से पहले इन ‘Ratio’ के बारे में जानना जरूरी, सही शेयर चुनने में मिलेगी मदद

Stock Market Tips: निवेश से पहले इन ‘Ratio’ के बारे में जानना जरूरी, सही शेयर चुनने में मिलेगी मदद

कुछ खास रेशियो के जरिए स्टॉक चुनने में मदद मिल सकती है. (Image- Pixabay)

Stock Market Tips: स्टॉक मार्केट में जब आप सीधे निवेश करते हैं तो सबसे पहला काम होता है, बेहतर स्टॉक को चुनना. स्टॉक चुनते समय बहुत सावधानियां बरतनी होती हैं ताकि आपको शानदार मुनाफा हासिल हो सके. कभी-कभी आपने खबरों में पढ़ा होगा कि इस कंपनी का शेयर महंगा है तो इसे लेना सही नहीं है. ऐसे में आपके मन में जरूर सवाल उठता होगा कि कोई शेयर सस्ता है या महंगा, इसका पता कैसे चलता है कि किसी स्टॉक का भाव सही या नही. इसका कैलकुलेशन खास फाइनेंशियल रेश्यो से पता चलता है. इसके अलावा इन रेशियो से कंपनी की सेहत का भी अंदाजा लगता है. आइए इन कुछ खास रेशियो के बारे में जानते हैं जिनसे स्टॉक चुनने में मदद मिल सकती है.

Price to Earnings (P/E) Ratio

प्राइस टू अर्निंग्स रेशियो किसी कंपनी के मौजूदा शेयर भाव और प्रति शेयर आय (EPS) का अनुपात है. इससे किसी कंपनी के शेयर भाव के ओवरवैल्यूड या अंडरवैल्यूड का पता चलता है. इसे मल्टीपल जैसे कि 15x, 20x, 23x के रूप में लिखते हैं और इसके जरिए एक ही इंडस्ट्री की दो कंपनियों के बीच में तुलना की जा सकती है तो एक ही कंपनी के ऐतिहासिक रिकॉर्ड को परखा जा सकता है. इसके अधिक होने का मतलब है कि भविष्य में ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें हैं या यह ओवरवैल्यूड है, वहीं दूसरी तरफ इसके कम होने का मतलब है कि कंपनी की ग्रोथ को लेकर अधिक उम्मीदें नहीं है या यह आउटपरफॉर्म कर सकती है यानी कि अंडरवैल्यूड है.

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Return on Equity (R/E) Ratio

यह किसी कंपनी की वित्तीय सेहत को मापने का एक पैमाना है जिसे नेट इनकम को कुल इक्विटी से डिवाइड करके निकालते हैं. इससे किसी कंपनी के शेयरों में निवेश पर रिटर्न का पता चलता है यानी कि यह निवेशकों को एक आइडिया देता है कि इसमें निवेश पर पूंजी कितनी बढ़ सकती है. यह कंपनी की प्रॉफिबिलिटी का मानक है कि कंपनी कितने बेहतर तरीके से प्रॉफिट जेनेरेट कर रही है.

इसका इस्तेमाल किसी कंपनी की बाजार पूंजी को इसके बुक वैल्यू से तुलना करने के लिए की जाती है. इसका मान कंपनी के मौजूदा शेयर भाव को प्रति शेयर के बुक वैल्यू से डिवाइड करके निकाला जाता है. बुक वैल्यू का मतलब बैलेंस शीट में दर्ज वैल्यू है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर लांग टर्म निवेशकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वैल्यू एक से कम होने पर एक से कम होने को बेहतर माना जाता है लेकिन वैल्यू इंवेस्टर्स 3 तक भी बेहतर मानते हैं. यह रेशियो कम होने का मतलब शेयर डिस्काउंट पर है.

Dividend Yield (Dividend-Price Ratio)

इससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने शेयर भाव की तुलना में कितना डिविडेंड दे रही है. इसे फीसदी के रूप में दिखाते हैं और इसकी वैल्यू डिविडेंड को शेयर भाव से डिवाइड करके निकालते हैं. हालांकि इसकी वैल्यू अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि निवेश के लिए कोई स्टॉक बेहतर है क्योंकि शेयर भाव कम होने पर भी इसकी वैल्यू अधिक हो सकती है.

यह कंपनी के कुल कर्ज और इक्विटी का अनुपात है. यह बहुत महत्वपूर्ण अनुपात है जिससे पता चलता है कि कंपनी कितना लीवरेज इस्तेमाल कर रही है यानी कि कंपनी अपने कारोबार के लिए अपने (शेयरधारकों के) पैसों की तुलना में कितना कर्ज ले रही है. इस रेशियो के अधिक होने का मतलब अधिक रिस्क है. हालांकि लांग टर्म निवेशकों के लिए अधिक रेशियो का मतलब शॉर्ट टर्म निवेशकों की तुलना में ROE के फायदे अलग है क्योंकि लांग टर्म में देनदारी शॉर्ट टर्म से अलग होती है. आमतौर पर 2-2.5 का डेट-इक्विटी रेशियो अच्छा माना जाता है.

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