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खुले बाजार और बंद बाजार लेनदेन में क्या अंतर है

खुले बाजार और बंद बाजार लेनदेन में क्या अंतर है

SGX NIFTY में गैप-अप का संकेत!! क्या यह कायम रहेगा?- आज का शेयर मार्केट

प्रमोटर साधनाला वेंकट राव ने 2 जून को खुले बाजार में लेनदेन के माध्यम से Pharmaids Pharmaceuticals में 7.75% इक्विटी हिस्सेदारी को बेच दी। इसके साथ, कंपनी में राव की हिस्सेदारी घटकर 22.39% हो गई, जो पहले 30.14% थी।

प्रमोटर रमेशचंद्र चिमनलाल शाह और पर्सन्स एक्टिंग इन कंसर्ट (persons acting in concert ) में 2 जून को खुले बाजार लेनदेन के माध्यम से प्रूडेंट कॉरपोरेट एडवाइजरी सर्विसेज में 4.25 लाख इक्विटी शेयर हासिल किए। इसके साथ, कंपनी में उनकी हिस्सेदारी 56.खुले बाजार और बंद बाजार लेनदेन में क्या अंतर है 78% से बढ़कर 57.81% हो गई।

अल्ट्राटेक सीमेंट ने ब्राउनफील्ड और ग्रीनफील्ड विस्तार के मिश्रण के साथ 22.6 mtpa तक क्षमता बढ़ाने के लिए 12,886 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की। यह इंटीग्रेटेड और ग्राइंडिंग यूनिट्स के साथ-साथ थोक टर्मिनलों की स्थापना करके प्राप्त किया जाएगा। अतिरिक्त क्षमता पूरे देश में बनाई जाएगी। वित्त वर्ष 2025 तक इन नई क्षमताओं के साथ चरणबद्ध तरीके से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।

MTAR टेक्नोलॉजीज ने GEE PEE एयरोस्पेस एंड डिफेंस में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए विक्रेताओं औरGEE PEE एयरोस्पेस एंड डिफेंस प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक शेयर खरीद समझौता किया है। अधिग्रहण की कुल लागत 8.82 करोड़ रुपये है।

क्या उम्मीद करें?

निफ्टी 16,496 के गैप-डाउन के साथ खुला, पिछले दिन के निचले स्तर पर सपोर्ट मिला और ऊपर चला गया। हालांकि एक बड़ा पुल-बैक था, लेकिन इंडेक्स ने अप-ट्रेंड जारी रखा। निफ्टी 105 अंक या 0.64% की बढ़त के साथ 16,628 पर बंद हुआ

बैंक निफ्टी 35,522 के अंतर के साथ खुला और कंसोलिडेट हुआ। अंत में एक ब्रेकआउट था, लेकिन परिमाण छोटा था। बैंक निफ्टी 7 अंक या 0.02% की गिरावट के साथ 35,613 पर फ्लैट बंद हुआ

अमेरिकी बाजारों में तेजी रही। यूरोपीय बाजार भी हरे निशान में बंद हुए।

एशियाई बाजार हरे रंग में हैं और निक्केई मिश्रित कारोबार कर रहा हैं। यूएस फ्यूचर्स और यूरोपीय फ्यूचर्स फ्लैट से हरे रंग में हैं।

SGX NIFTY 16,789 पर कारोबार कर रहा है, जो एक गैप-अप ओपनिंग का संकेत दे रहा है।

निफ्टी को 16,610, 16,570 और 16,510 पर सपोर्ट है। हम 16,700, 16,850 और 16,920 पर प्रतिरोध की उम्मीद कर सकते हैं।

बैंक निफ्टी को 35,500, 35,350 और 35,000 पर सपोर्ट है। प्रतिरोध 35,750, 36,000 और 36,300 पर हैं।

विदेशी संस्थागत निवेशकों ने कुल 450 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। घरेलू संस्थागत निवेशकों ने कुल 130 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।

लंबे समय के बाद निफ्टी में तेजी का एक्सपायरी डे देखने को मिला। निफ्टी में एक उचित अप-ट्रेंड था, हालांकि एक बड़ा पुल-बैक भी था, और नीचे की तरफ 16,500 को पार कर गया था। 16,700 निफ्टी के लिए बड़ी बाधा होगी।

पिछले हफ्ते के विपरीत वित्तीय शेयरों का प्रदर्शन कमजोर रहा। रिलायंस में बहुत तेज थी। आइए, आज HDFC ट्विन्स और रिलायंस पर नज़र रखें।

SGX NIFTY में तेजी का संकेत है। बाद में, अमेरिकी बाजारों में तेजी के साथ पश्चिमी बाजार भी सकारात्मक रहे। हालांकि, सवाल यह है कि क्या यह तेजी कुछ दिनों तक कायम रहती है। प्रमुख प्रतिरोध स्तर पर पहुँचते ही हम तेज बिकवाली देख रहे हैं।

एशियाई बाजार आज उतने सहायक नहीं हैं। आपने निक्केई को सकारात्मक क्षेत्र में देखा होगा, जबकि चीनी बाजार नीचे हैं। निक्केई में सकारात्मकता का कारण सर्विसेज PMI डेटा है, जिसने पिछले छठे महीनों में सबसे तेज बढ़त का संकेत दिया है।

हम ऊपर की तरफ 16,700 और नीचे की तरफ 16,500 देख रहे हैं।

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रुपये के प्रबंधन हेतु क्या उपाय संभव?

लगभग 1.38 अरब भारतीयों का डॉलर के मुकाबले रुपये के स्तर को लेकर एक अलग किस्म का लगाव है। उनकी यह चाह है कि वह 80 का स्तर पार न करे। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि वायदा अनुबंध अक्सर पूर्ण अंक में लिखे जाते हैं। इससे एक किस्म की स्थिरता आती है।

36 देशों की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) के आधार पर देखें तो रुपया अभी भी अप्रैल 2020 के स्तर से मजबूत है। आरईईआर को नॉमिनल विनिमय दर के रूप में परिभाषित किया जाता है जो घरेलू और विदेशी मुल्कों के बीच सापेक्षिक मूल्य अंतर पर आधारित होता है तथा बाह्य प्रतिस्पर्धा का परिचायक भी होता है।

जाहिर है मुद्रा बाजार हमारी आहों, चीख चिल्लाहटों को तवज्जो नहीं देगा। रुपया अपना स्तर तलाश लेगा और यह कई कारकों पर आधारित होगा। पिछले दिनों रुपया 80 के स्तर के पार चला गया और पहली बार हाजिर बाजार 80 के स्तर के ऊपर कारोबार कर रहा था। केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के चलते उसके बाद से इसकी कीमत में सुधार हो रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गिरावट रोकने के लिए डॉलर की बिकवाली की है। अपने उच्चतम स्तर पर देश का विदेशी मुद्रा भंडार 642 अरब डॉलर था लेकिन यह 572.7 अरब डॉलर के साथ 20 महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ गया। आरबीआई की डॉलर बिकवाली, डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं का अवमूल्यन आदि ने भी विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी में योगदान किया है।

अधिकांश उभरते बाजारों की मुद्राओं का अवमूल्यन रुपये के अवमूल्यन के अनुरूप ही है लेकिन यूरो, पाउंड स्टर्लिंग तथा जापानी येन जैसी आरक्षित मुद्राओं में भी दो अंकों में गिरावट आई है। दक्षिण कोरिया की मुद्रा वॉन, फिलिपींस की पेसो, थाई मुद्रा बहत और ताइवानी डॉलर में रुपये के मुकाबले अधिक गिरावट आई है।

यानी रुपया कोई अपवाद नहीं है। रुपये में गिरावट क्यों आ रही है? इसकी तीन प्रमुख वजहें हैं: अमेरिका में ब्याज दरों में इजाफा, भारत के चालू खाते के घाटे में इजाफा और मुद्रास्फीति में इजाफा। हमारी खुदरा मुद्रास्फीति अमेरिका तथा कुछ विकसित देशों के साथ तुलना लायक नहीं है लेकिन थोक मुद्रास्फीति अप्रैल 2021 से ही दो अंकों में है। इसके अलावा अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम पर मंदी का खतरा है तथा वैश्विक वृद्धि खामोश है। रूस-यूक्रेन जंग ने भूराजनीतिक जोखिम बढ़ा दिए हैं और हाल तक जिंस कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा था।

इस परिदृश्य में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक जनवरी से अब तक करीब 30 अरब डॉलर की राशि निकाल चुके हैं। इसके चलते मांग और आपूर्ति के बीच अंतर उत्पन्न हो रहा है जो स्थानीय मुद्रा के मूल्य में नजर आता है। आरबीआई इस गिरावट को नहीं रोक सकता, वह केवल अवमूल्यन की प्रक्रिया को सहज बना सकता है। अतीत में जब रुपये के मूल्य में तेज गिरावट आई तब भारत ने इसे अलग-अलग ढंग से प्रबंधित किया। उदाहरण के लिए अगस्त 1998 में रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड्स की मदद से 4.8 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई थी ताकि पोकरण-2 विस्फोट के बाद लगाए गए अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों को देखते हुए मुद्रा भंडार मजबूत किया जा सके। 2001 में इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट स्कीम की मदद से 5.5 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई। सन 2013 के आखिर में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी बॉन्ड खरीद को कम करने की बात कही। उस समय रुपये में भारी गिरावट आई और विदेशी मुद्रा अनिवासी जमा की मदद से 34.3 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई। अब हालात बदल गए हैं। जिंस कीमतों में कमी आने से चालू खाते का घाटा कम हो सकता है। परंतु शेयर कीमतों में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट के बाद भी वे विदेशी खरीदारों को आकर्षक नहीं लग रहे हैं और ऐसे में पूंजी प्रवाह पर सवाल बना हुआ है। यह सही है कि भारत को मंदी का सामना नहीं करना पड़ेगा और उच्च तीव्रता वाले आंकड़े बताते हैं कि गतिशीलता विद्यमान है लेकिन वृद्धि अभी तक जोर नहीं पकड़ सकी है। आयातक खुद को रुपये के अवमूल्यन से बचाने का प्रयास कर रहे हैं जबकि निर्यातक प्रतीक्षा कर रहे हैं और आशा कर रहे हैं कि वे कुछ और कमाई कर सकेंगे। रुपये का अवमूल्यन होने पर बाहर से आने वाले धन की आवक भी धीमी हो जाती है। ऐसा और खुले बाजार और बंद बाजार लेनदेन में क्या अंतर है अवमूल्यन की प्रत्याशा में होता है।

आरबीआई पहले ही कंपनियों के लिए विदेशी उधारी की सीमा बढ़ा चुका है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मानक उदार बनाए गए हैं। उसने सीमा पार व्यापारिक लेनदेन को रुपये में निपटाने को भी इजाजत दे दी है। अभी इन मानकों के असर को आंकना जल्दबाजी होगी। केंद्रीय बैंक के एक वरिष्ठ स्रोत के हवाले से एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर आरबीआई रुपये के बचाव में 100 अरब डॉलर की और राशि व्यय कर सकता है। दरअसल आज भी भारत चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद चौथा सर्वाधिक विदेशी मुद्रा वाला देश है और वह कम से कम 10 महीने के आयात को संभाल सकता है। अलग-अलग देशों में मुद्रा भंडार का स्वरूप भी अलग-अलग है। भारत में इसका एक बड़ा हिस्सा ऋण के रूप में है। निश्चित तौर पर मार्च 2022 के अंत में बाह्य ऋण -जीडीपी अनुपात 19.9 फीसदी था जबकि एक वर्ष पहले यह 21.2 फीसदी था। परंतु कुल व्यय में अल्पावधि के डेट की हिस्सेदारी मार्च 2022 तक बढ़कर 19.6 फीसदी हो गई जबकि मार्च 2021 के अंत तक यह 17.6 फीसदी थी। क्या पुराने तौर तरीके कारगर होंगे? खासतौर पर 2013 की तरह बैंकों को प्रोत्साहन के साथ एनआरआई जमा जुटाना तथा दरों में अचानक तेज इजाफा। उस समय उच्च मुद्रास्फीति मांग आधारित थी जबकि आज यह आपूर्ति क्षेत्र के दबाव की वजह से है। कुछ देशों में जंग तथा मंदी का खतरा है जिससे भारत समेत कई देशों के वृद्धि पूर्वानुमान प्रभावित हो रहे हैं। इसके साथ ही मुद्रास्फीति के आने वाले कई महीनों तक तेज बने रहने की संभावना है।

हमें दरों में व्यवस्थित इजाफा करते हुए अमेरिका के साथ ब्याज दरों का अंतर बरकरार रखना होगा और रुपये को उसका उचित मूल्य तलाशने देना होगा।

पुनश्च: कई लोग मानते हैं कि वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत को शामिल करने से बात बन सकती है। लेकिन यह एक दोधारी तलवार है। इससे नकदी की आवक हो सकती है लेकिन जब विदेशी मुद्रा सुरक्षा की दृष्टि से बाहर जाती है तब यह मुद्रा और बॉन्ड प्रतिफल पर विपरीत प्रभाव भी डालेगा।

तीन दिन तक बैंकों के बंद रहने से लोगों को हुई परेशानी, मंगलवार को उमड़ी भीड़ .

खैरागढ़. तीन दिन बाद खुले बैंको से लोगों के साथ खातेदारो को भी राहत मिली। लगातार तीन दिन अवकाश के कारण बैंक संबंधी कार्रवाई पर पूरी तरह विराम लग गया था। तीन दिन से बैंको के बंद होने के कारण लेनदेन भी काफी ज्यादा प्रभावित हो गया था। रोजाना बैंको से लेनदेन करने वाले खातेदारो को इस दौरान परेशानी उठानी पड़ रही थी। ऐसे मे मंगलवार को तीन दिन के अवकाश के बाद बैंक खुलने से खातेदारो और लेनदेन के लिए अटके लोगो को राहत मिली। जिला सहकारी बैंक की शाखा में केसीसी लोन बनाने रोजाना किसान उमड़ रहे है।

People got in trouble due to banks being closed for three days, crowd gathered on Tuesday .

ऐसे में गुरुवार को शासन ने न्याय योजना के तहत समर्थन मूल्य पर खरीदी की गई धान की अंतर की राशि का पहला किश्त किसानों के खातें में हस्तांतरित कर दिया है। गुरूवार शाम तक किसानों के खातें में राशि पहुंचने लगी। शनिवार रविवार और सोमवार को लगातार अवकाश के बाद केसीसी सहित अन्य कार्यो के लिए बैंक पहुंचने वाले किसानों के साथ अंतर की राशि निकालने वाले किसान भी बड़ी संख्या पहुंचे। ऐसे में बैंकों में लॉकडाउन का पालन करानें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

केसीसी लोन सहित अन्य कार्यों के लिए रोजाना यहां बैंकों में लंबी लाइन लग रही है। मंगलवार से धान के अंतर की राशि मिलने से बड़ी संख्या में किसान बैंक पहुंचे। जिससे बैंकों को गर्मी सहित सोशल डिस्टेंस और नियमों का पालन कराने की व्यवस्था भी कम पड़ गई। बैंकों में बढ़ी भीड़ से बैंककर्मी भी खासे परेशान रहे। मंगलवार को बैंकों में अतिरिक्त व्यवस्था बनानी पड़ सकती है। सोशल डिस्टेंस सहित लॉकडाउन के नियमों का पालन कराने में खासी परेशानी हुई।

रुपये के प्रबंधन हेतु क्या उपाय संभव?

लगभग 1.38 अरब भारतीयों का डॉलर के मुकाबले रुपये के स्तर को लेकर एक अलग किस्म का लगाव है। उनकी यह चाह है कि वह 80 का स्तर पार न करे। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि वायदा अनुबंध अक्सर पूर्ण अंक में लिखे जाते हैं। इससे एक किस्म की स्थिरता आती है।

36 देशों की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) के आधार पर देखें तो रुपया अभी भी अप्रैल 2020 के स्तर से मजबूत है। आरईईआर को नॉमिनल विनिमय दर के रूप में परिभाषित किया जाता है जो घरेलू और विदेशी मुल्कों के बीच सापेक्षिक मूल्य अंतर पर आधारित होता है तथा बाह्य प्रतिस्पर्धा का परिचायक भी होता है।

जाहिर है मुद्रा बाजार हमारी आहों, चीख चिल्लाहटों को तवज्जो नहीं देगा। रुपया अपना स्तर तलाश लेगा और यह कई कारकों पर आधारित होगा। पिछले दिनों रुपया 80 के स्तर के पार चला गया और पहली बार हाजिर बाजार 80 के स्तर के ऊपर कारोबार कर रहा था। केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के चलते उसके बाद से इसकी कीमत में सुधार हो रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गिरावट रोकने के लिए डॉलर की बिकवाली की है। अपने उच्चतम स्तर पर देश का विदेशी मुद्रा भंडार 642 अरब डॉलर था लेकिन यह 572.7 अरब डॉलर के साथ 20 महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ गया। आरबीआई की डॉलर बिकवाली, डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं का अवमूल्यन आदि ने भी विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी में योगदान किया है।

अधिकांश उभरते बाजारों की मुद्राओं का अवमूल्यन रुपये के अवमूल्यन के अनुरूप ही है लेकिन यूरो, पाउंड स्टर्लिंग तथा जापानी येन जैसी आरक्षित मुद्राओं में भी दो अंकों में गिरावट आई है। दक्षिण कोरिया की मुद्रा वॉन, फिलिपींस की पेसो, थाई मुद्रा बहत और ताइवानी डॉलर में रुपये के मुकाबले अधिक गिरावट आई है।

यानी रुपया कोई अपवाद नहीं है। रुपये में गिरावट क्यों आ रही है? इसकी तीन प्रमुख वजहें हैं: अमेरिका में ब्याज दरों में इजाफा, भारत के चालू खाते के घाटे में इजाफा और मुद्रास्फीति में इजाफा। हमारी खुदरा मुद्रास्फीति अमेरिका तथा कुछ विकसित देशों के साथ तुलना लायक नहीं है लेकिन थोक मुद्रास्फीति अप्रैल 2021 से ही दो अंकों में है। इसके अलावा अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम पर मंदी का खतरा है तथा वैश्विक वृद्धि खामोश है। रूस-यूक्रेन जंग ने भूराजनीतिक जोखिम बढ़ा दिए हैं और हाल तक जिंस कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा था।

इस परिदृश्य में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक जनवरी से अब तक करीब 30 अरब डॉलर की राशि निकाल चुके हैं। इसके चलते मांग और आपूर्ति के बीच अंतर उत्पन्न हो रहा है जो स्थानीय मुद्रा के मूल्य में नजर आता है। आरबीआई इस गिरावट को नहीं रोक सकता, वह केवल अवमूल्यन की प्रक्रिया को सहज बना सकता है। अतीत में जब रुपये के मूल्य में तेज गिरावट आई तब भारत ने इसे अलग-अलग ढंग से प्रबंधित किया। उदाहरण के लिए अगस्त 1998 में रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड्स की मदद से 4.8 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई थी ताकि पोकरण-2 विस्फोट के बाद लगाए गए अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों को देखते हुए मुद्रा भंडार मजबूत किया जा सके। 2001 में इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट स्कीम की मदद से 5.5 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई। सन 2013 के आखिर में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी बॉन्ड खरीद को कम करने की बात कही। उस समय रुपये में भारी गिरावट आई और विदेशी मुद्रा अनिवासी जमा की मदद से 34.3 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई। अब हालात बदल गए हैं। जिंस कीमतों में कमी आने से चालू खाते का घाटा कम हो सकता है। परंतु शेयर कीमतों में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट के बाद भी वे विदेशी खरीदारों को आकर्षक नहीं लग रहे हैं और ऐसे में पूंजी प्रवाह पर सवाल बना हुआ है। यह सही है कि भारत को मंदी का सामना नहीं करना पड़ेगा और उच्च तीव्रता वाले आंकड़े बताते हैं कि गतिशीलता विद्यमान है लेकिन वृद्धि अभी तक जोर नहीं पकड़ सकी है। आयातक खुद को रुपये के अवमूल्यन से बचाने का प्रयास कर रहे हैं जबकि निर्यातक प्रतीक्षा कर रहे हैं और आशा कर रहे हैं कि वे कुछ और कमाई कर सकेंगे। रुपये का अवमूल्यन होने पर बाहर से आने वाले धन की आवक भी धीमी हो जाती है। ऐसा और अवमूल्यन की प्रत्याशा में होता है।

आरबीआई पहले ही कंपनियों के लिए विदेशी उधारी की सीमा बढ़ा चुका है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मानक उदार बनाए गए हैं। उसने सीमा पार व्यापारिक लेनदेन को रुपये में निपटाने को भी इजाजत दे दी है। अभी इन मानकों के असर को आंकना जल्दबाजी होगी। केंद्रीय बैंक के एक वरिष्ठ स्रोत के हवाले से एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर आरबीआई रुपये के बचाव में 100 अरब डॉलर की और राशि व्यय कर सकता है। दरअसल आज भी भारत चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद चौथा सर्वाधिक विदेशी मुद्रा वाला देश है और वह कम से कम 10 महीने के आयात को संभाल सकता है। अलग-अलग देशों में मुद्रा भंडार का स्वरूप भी अलग-अलग है। भारत में इसका एक बड़ा हिस्सा ऋण के रूप में है। निश्चित तौर पर मार्च 2022 के अंत में बाह्य ऋण -जीडीपी अनुपात 19.9 फीसदी था जबकि एक वर्ष पहले यह 21.2 फीसदी था। परंतु कुल व्यय में अल्पावधि के डेट की हिस्सेदारी मार्च 2022 तक बढ़कर 19.6 फीसदी हो गई जबकि मार्च 2021 के अंत तक यह 17.6 फीसदी थी। क्या पुराने तौर तरीके कारगर होंगे? खासतौर पर 2013 की तरह बैंकों को प्रोत्साहन के साथ एनआरआई जमा जुटाना तथा दरों में अचानक तेज इजाफा। उस समय उच्च मुद्रास्फीति मांग आधारित थी जबकि आज यह आपूर्ति क्षेत्र के दबाव की वजह से है। कुछ देशों में जंग तथा मंदी का खतरा है जिससे भारत समेत कई देशों के वृद्धि पूर्वानुमान प्रभावित हो रहे हैं। इसके साथ ही मुद्रास्फीति के आने वाले कई महीनों तक तेज बने रहने की संभावना है।

हमें दरों में व्यवस्थित इजाफा करते हुए अमेरिका के साथ ब्याज दरों का अंतर बरकरार रखना होगा और रुपये को उसका उचित मूल्य तलाशने देना होगा।

पुनश्च: कई लोग मानते हैं कि वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत को शामिल करने से बात बन सकती है। लेकिन यह एक दोधारी तलवार है। इससे नकदी की आवक हो सकती है लेकिन जब विदेशी मुद्रा सुरक्षा की दृष्टि से बाहर जाती है तब यह मुद्रा और बॉन्ड प्रतिफल पर विपरीत प्रभाव भी डालेगा।

तीन दिन तक बैंकों के बंद रहने से लोगों को हुई परेशानी, मंगलवार को उमड़ी भीड़ .

खैरागढ़. तीन दिन बाद खुले बैंको से लोगों के साथ खातेदारो को भी राहत मिली। लगातार तीन दिन अवकाश के कारण बैंक संबंधी कार्रवाई पर पूरी तरह विराम लग गया था। तीन दिन से बैंको के बंद होने के कारण लेनदेन भी काफी ज्यादा प्रभावित हो गया था। रोजाना बैंको से लेनदेन करने वाले खातेदारो को इस दौरान परेशानी उठानी पड़ रही थी। ऐसे मे मंगलवार को तीन दिन के अवकाश के बाद बैंक खुलने से खातेदारो और लेनदेन के लिए अटके लोगो को राहत मिली। जिला सहकारी बैंक की शाखा में केसीसी लोन बनाने रोजाना किसान उमड़ रहे है।

People got in trouble due to banks being closed for three days, crowd gathered on Tuesday .

ऐसे में गुरुवार को शासन ने न्याय योजना के तहत समर्थन मूल्य पर खरीदी की गई धान की अंतर की राशि का पहला किश्त किसानों के खातें में हस्तांतरित कर दिया है। गुरूवार शाम तक किसानों के खातें में राशि पहुंचने लगी। शनिवार रविवार और सोमवार को लगातार अवकाश के बाद केसीसी सहित अन्य कार्यो के लिए बैंक पहुंचने वाले किसानों के साथ अंतर की राशि निकालने वाले किसान भी बड़ी संख्या पहुंचे। ऐसे में बैंकों में लॉकडाउन का पालन करानें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

केसीसी लोन सहित अन्य कार्यों के लिए रोजाना यहां बैंकों में लंबी लाइन लग रही खुले बाजार और बंद बाजार लेनदेन में क्या अंतर है है। मंगलवार से धान के अंतर की राशि मिलने से बड़ी संख्या में किसान बैंक पहुंचे। जिससे बैंकों को गर्मी सहित सोशल डिस्टेंस और नियमों का पालन कराने की व्यवस्था भी कम पड़ गई। बैंकों में बढ़ी भीड़ से बैंककर्मी भी खासे परेशान रहे। मंगलवार को बैंकों में अतिरिक्त व्यवस्था बनानी पड़ सकती है। सोशल डिस्टेंस सहित लॉकडाउन के नियमों का पालन कराने में खासी परेशानी हुई।

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