विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता

क्या विदेशी मुद्रा को विदेशी रियल एस्टेट में विदेशी निवेश आकर्षित करेगा?
500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के मुताबिक, रियल एस्टेट क्षेत्र में नकद लेनदेन में तत्काल कमी होने की संभावना है। खरीदारों से अधिक वैध लेनदेन की ओर बढ़ने की संभावना है, इस प्रकार, समय की अवधि में संरचनात्मक प्रभाव पड़ता है अल्प अवधि के तहत तरलता का अनुबंध होगा और कीमतें अधिक आकर्षक हो जाएंगी अल्पकालिक लाभ के लिए निवेशकों के कम अवसर होंगे।
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Rupee vs Doller: इन पांच कारणों की वजह से टूट रहा रुपया, इस तरह हल्की होगी आम आदमी की जेब
रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है. यह 74 प्रति डॉलर से 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. रुपये में कमजोरी से आम आदमी के ऊपर दोहरी मार पड़ेगी. भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल लैपटॉप समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है.
डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया
gnttv.com
- नई दिल्ली,
- 15 जुलाई 2022,
- (Updated 15 जुलाई 2022, 1:21 PM IST)
डॉलर के मुकाबले लुढ़कता जा रहा है रुपया
रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है.
भारतीय रुपया टूटकर अब तक के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. गुरुवार को रुपया 79.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. यह रुपया के लिए अबतक का सबसे निचला स्तर है. रुपया इस साल करीब 7.5 फीसदी कमजोर हुआ है. यह 74 प्रति डॉलर से 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. रुपये में आ रही लगातार गिरावट को थामने की आरबीआई हर मुमकिन कोशिश कर रहा है.
क्यों टूट रहा रुपया
वैश्विक बाजार में डॉलर की मांग में तेजी- दुनियाभर में 85 प्रतिशत व्यापार अमेरिकी डॉलर से होता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की जरूरत होती है. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वह इसी मुद्रा में अन्य देशों को ऋण देता है और वसूलता है. इसके अलावा दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64 प्रतिशत अमेरिकी डॉलर होते हैं. इसलिए दिन प्रतिदिन डॉलर की मांग बढ़ रही है और Dollar के आगे रुपया पस्त हो रहा है. यदि अमेरिकी डॉलर की मांग ज्यादा है, तो भारतीय रुपये का गिरना तय है.
भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की निकासी
भारतीय इक्विटी और बॉन्ड बाजारों से लगातार डॉलर की निकासी हो रही है. इससे डॉलर की मांग बढ़ रही है. विदेशी निवेशकों का पैसे निकाल लेना इस बात का संकेत है कि वो भारत में निवेश सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं.
वैश्विक मंदी की आशंका
अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका बढ़ती जा रही है. महंगाई को काबू में करने विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता के लिए दुनियाभर के देशों के केंद्रीय बैंकों (RBI) ने प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. दुनिया के सामने खाद्य संकट की स्थिति है. अमेरिका में बढ़ती महंगाई व मंदी की आशंका का असर साफ देखा जा सकता है.
रूस यूक्रेन युद्ध
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर के देशों को प्रभावित किया है. जो रुपया 24 फरवरी को डॉलर के मुकाबले 75.3 स्तर पर चल रहा था, युद्ध के इतने महीने बाद 79.85 प्रति डॉलर पर आ गया है. इसका असर आयात पर भी पड़ा है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में महंगाई को भी कई गुना बढ़ा दिया है.
यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में राजनीतिक उथल पुथल
दुनिया के कई देशों में हो रही राजनीतिक उथल पुथल का प्रतिकूल प्रभाव रुपया पर पड़ रहा है. दुनियाभर में हो रही तमाम आर्थिक गतिविधियों का असर भारतीय रुपये पर पड़ता नजर आ रहा है. यह भी भारतीय रुपये के गिरने के विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता पीछे का मुख्य कारण है.
इस तरह आपकी जेब हल्की होगी
रुपये में कमजोरी से आम आदमी के ऊपर दोहरी मार पड़ेगी. भारत जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल लैपटॉप समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात करता है. ज्यादातर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्यू पूर्वी एशियाई शहरों से होता है. ज्यादातर कारोबार डॉलर में होता है, विदेश से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय माना जा रहा है. रुपया के कमजोर होने से विदेशों में पढ़ाई महंगी हो जाएगी. इसके अलावा कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल डीजल की कीमतें भी बढ़ेंगी. अमेरिकी फेड रिजर्व ने महंगाई को काबू में लाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. इस बढ़ोतरी के बाद डॉलर और ज्यादा मजबूत हुआ है. इसका खामियाजा रुपया को भुगतना पड़ रहा है. रोजगार के अवसर पर भी रुपया के कमजोर होने का असर पड़ता है. गिरते रुपये को उठाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि से लोन लेना महंगा हो सकता है.
विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार करने की सम्भावना: भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीने के आयात के मूल्य के बराबर है। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल तीन सप्ताह के आयात के मूल्य के बराबर का विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध था। अच्छी तरह से निष्पादित की गयी नीतियां ही इस वृद्धि का कारण है।
एक हालिया रिपोर्ट में, अग्रणी वैश्विक वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने अनुमान लगाया था कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 400 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। 16 अगस्त 2017 में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल मजबूत पूंजी प्रवाह और कमजोर कर्जों के उठाव से प्रेरित है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की समीक्षा
वर्ष 1991 के बाद से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार काफी बढ़ गया है। मार्च 1991 के अंत में रहे 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर का मुद्रा भंडार दिसंबर 2003 में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है। भारत अप्रैल 2007 में 200 अरब अमरीकी डॉलर के क्लब में शामिल हो गया और उसी गति को जारी रखते हुए वर्ष 2013 में 300 बिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर गया। तब से, सिर्फ चार वर्षों के अवधि में ही आरबीआई ने लगभग 100 अरब डॉलर जमा कर लिया। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 4 अगस्त 2017 को जारी आंकड़ों के अनुसार, 28 जुलाई 2017 को समाप्त हुए सप्ताह तक विदेशी मुद्रा भंडार 1.536 अमरीकी अरब डॉलर से बढ़कर 392.867 अमरीकी अरब डॉलर के नए रिकॉर्ड को पार कर गया था ।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी के कारण -
अनुकूल भुगतान संतुलन: आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 (खंड II) के अनुसार, भारत में भुगतान संतुलन की स्थिति वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2015-16 तक की अवधि के दौरान अच्छी एवं संतोषजनक रही थी। भुगतान संतुलन 2016-17 वर्ष में और अधिक बेहतर हो गई। व्यापार एवं चालू खातों के घाटे में निरंतर कमी और देश में पूंजी के प्रवाह में लगातार वृद्धि से ही यह संभव हो पाया था ।
व्यापार घाटे में कमी: वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे हो रहे सुधार के कारण भारत का निर्यात दो साल के अंतराल के बाद वर्ष 2016-17 में सकारात्मक (12.3 प्रतिशत) हो गया। इस कारण से भारत के व्यापार घाटे में 1.2 प्रतिशत की कमी आई ।यह प्रवृत्ति वित्त वर्ष 2017-18 में भी जारी है। वित्त वर्ष 2017-18 के पहले चतुर्थेश (अप्रैल-जून माह में) निर्यात में दहाई अंकों (10.6 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की गई।
चालू खाता घाटे में कमी: चालू खाता घाटा (सीएडी) में निरंतर कमी होकर वर्ष 2016-17 में जीडीपी के 0.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी। यह घटोतरी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2015-16 में सीएडी, जीडीपी की 1.1 प्रतिशत थी। व्यापार घाटे में तेजी से हुई कमी के कारण यह संभव हो पाया है।
पूंजी प्रवाह में वृद्धि: शुद्ध पूंजी का प्रवाह वर्ष 2016-17 में कम होकर 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.6 प्रतिशत) के स्तर पर आ गया । वर्ष 2015-16 में शुद्ध पूंजी का प्रवाह 40.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.9 प्रतिशत) था। सरकार द्वारा किए गए ईज ऑफ डूइंग उपायों के कारण यह संभव हो पाया है।
कमजोर कर्जों का उठाव:विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता 9 नवंबर 2016 को पुराने बड़े नोटों का चलन बंद करने के निर्णय से बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा प्रचलन काफी हद तक घट गया। 31 मार्च 2017 तक मुद्रा प्रचलन में 19.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जबकि आरक्षित मुद्रा में 12.9 प्रतिशत की कमी आंकी गईं।
बैंकों से कर्जों का उठाव बाद में और भी घटता चला गया। वर्ष 2016-17 के दौरान सकल बकाए बैंक ऋण में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2016-17 में और इसी समय उद्योग जगत को मिले ऋण विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता में 0.2 प्रतिशत की कमी आंकी गई।
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि का प्रभाव
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होगा।
• भारतीय अर्थव्यवस्था में, वैश्विक अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता के कारण उपस्थित स्थितियों को सहन करने की क्षमता में वृद्धि होगी। वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीने के आयात के मूल्य के बराबर है। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल तीन सप्ताह के आयात के मूल्य के बराबर का विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध था। अच्छी तरह से निष्पादित की गयी नीतियां ही इस वृद्धि का कारण है।
• समग्र विदेशी ऋण में अल्पावधि ऋण के घटक में कमी आई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि अल्पकालिक ऋण की तुलना में दीर्घकालिक ऋण कम ब्याज दर के साथ उपलब्ध होता है।
• मुद्रा आदान-प्रदान करने और क्रेडिट की लाइनें बढ़ाने के लिए 'अतिरिक्त भंडार' का उपयोग किया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे बहुपक्षीय निकायों में योगदान करने के लिए भी इनका उपयोग किया जाएगा । यह उपाय वैश्विक नीति बनाने में भारत की भूमिका को मजबूत करने में सहायक होगा।
• विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से रुपए के मूल्य में वृद्धि होगी । मजबूत रुपया आयात बिल को कम करने में मदद करेगा क्योंकि भारत लगभग 70% कच्चे तेल का आयात करता है ।
उपरोक्त लाभों के बावजूद, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
• रुपए के मूल्य में वृद्धि से भारत के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है । विशेष रूप से ‘सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवा’ क्षेत्र पर भारी असर पड़ सकता है ।
• विदेशी मुद्रा संचय में ‘अवसर लागत’ उपस्थित है क्योंकि एक तरफ आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को कम उपज वाले अल्पकालिक अमेरिकी राजकोष (और अन्य) प्रतिभूतियों के रूप में रखता है, दूसरी तरफ उद्योग क्षेत्र उच्च ब्याज दर पर पैसा उधार लेता है ।
निष्कर्ष
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने ज़रूरत से ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडारों को जमा किया है । इसलिए, आरबीआई को अतिरिक्त भंडार के बुनियादी ढांचों और बैंकों विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता के पुनःपूंजीकरण जैसे वैकल्पिक उपयोगों में निवेश करना चाहिए।
जून 2017 तक, भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपए के मूल्य को विनियमित करने के लिए करीबन 20 अरब अमरीकी डॉलर को मुद्रा बाज़ार में निवेश किया है । विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करने के तरीकों की खोज के अतिरिक्त, आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के इष्टतम स्तर की गणना करने के तरीकों को विकसित करना चाहिए ।
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देश का विदेशी मुद्रा भंडार एक हफ्ते में 28.9 करोड़ डॉलर बढ़ा, गोल्ड रिजर्व में भी उछाल
Foreign exchange reserves 19 November 2021: डॉलर में अभिव्यक्त किए जाने वाले विदेशीमुद्रा आस्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्रा के घट-बढ़ को भी समाहित किया जाता है.
अंतररराष्ट्रीय मुद्राकोष में देश का मुद्रा भंडार 1.3 करोड़ डॉलर घटकर 5.188 अरब डॉलर रहा.
Foreign exchange reserves 19 November 2021: देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 28.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 640.401 अरब डॉलर हो गया. पीटीआई की खबर के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक के शुक्रवार को जारी आंकड़े के मुताबिक, इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 76.3 करोड़ डॉलर घटकर 640.112 अरब डॉलर रहा था. 3 सितंबर, 2021 को खत्म हुए सप्ताह में मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर विदेशी मुद्रा संकेत प्रदाता पर पहुंच गया था.
एफसीए 22.5 करोड़ डॉलर बढ़ा
खबर के मुताबिक, समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियों (FCA) में बढ़ोतरी हुई. एफसीए का विदेशी मुद्रा भंडार में महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, सप्ताह के दौरान एफसीए 22.5 करोड़ डॉलर बढ़कर 575.712 अरब डॉलर हो गया. डॉलर में अभिव्यक्त किए जाने वाले विदेशीमुद्रा आस्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्रा के घट-बढ़ को भी समाहित किया जाता है.
स्वर्ण भंडार भी बढ़ा
19 नवंबर 2021 को खत्म हुए सप्ताह के दौरान स्वर्ण भंडार का मूल्य 15.2 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.391 अरब डॉलर हो गया. समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) से विशेष आहरण अधिकार 7.4 करोड़ डॉलर घटकर 19.11 अरब डॉलर रह गया. अंतररराष्ट्रीय मुद्राकोष में देश का मुद्रा भंडार 1.3 करोड़ डॉलर घटकर 5.188 अरब डॉलर रहा.
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2019 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 27 दिसंबर 2019 को खत्म हुए सप्ताह में दो अरब 52 करोड़ डॉलर बढ़कर रिकॉर्ड 457 अरब 46 करोड़ 80 लाख डॉलर दर्ज किया गया था. विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (forex assets) को समग्र विदेशी मुद्रा भंडार का प्रमुख भाग माना जाता है. विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां डॉलर में व्यक्त की जाती हैं. इसमें डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन में होने वाली घटबढ़ भी शामिल है. यह सकल विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है.